हाल के बिगत कुछ दिन पहले मखाने (Makhane) को जी.आई. टैग मिला|
यह जी.आई टैग मिलने के बाद अब मिथिला के मखाने को, विश्व स्तर पर बिहार मखान के नाम से जाना जाने लगा है।
विडम्बना देखिए,
मिथिला सभ्यता संस्कृति का अभिन्न हिस्सा मखान ना जाने कब से अपने मूल पहचान विश्व स्तर पर पाने का इंतजार में था।
पहचान तो मिला लेकिन कसक के साथ।
अगर बात किया जाए तो मखान का 90% उत्पाद सिर्फ मिथिला के 6-7 जिलों में ही किया जाता है, इसके बावजूद इसे लोकल पहचान नहीं मिल पाया है।
मधुबनी,दरभंगा,सीतामढ़ी,भागलपुर,समस्तीपुर, आदि इन जिलों मै मखान का प्रमुख उत्पादन होता है।
इतना ही नहीं इससे लोगों का रोजगार जुड़ा है और लोग अपना जीवन यापन करते है।
“पग पग पोखर माछ मखान,
सरस बोल मूस्की मुख पान”
ये दो पंक्ति ही आपको मिथिला सभ्यता और संस्कृति के बारे में आपको संपूर्णता का एहसास करवा देगा।
हर कुछ दूरी पे पोखर ( तालाब) है मिथिला में।
इसीलिए मखान के करोबार के लिए जो सबसे महत्त्वपूर्ण स्रोत चाहिए तालाब उसकी कमी नहीं है।
मखान की खेती निर्भर ही है तालाब और पानी पर।
सेहत के लाभदायक के लिए बात किया जाए अगर तो मखाने में कैलरी बहुत कम होता हैं, और फाइबर आधिक मात्रा में पाया जाता हैं,इसके सेवन करने से किडनी रोग, दिल के रोग, और सेहत बनाने मै बहुत अधिक फायदा पहुंचाता हैं और।
एनर्जी का भंडार हैं एनर्जी की कमी को दूर करता हैं मिथिला मखान इतना ही नहीं शरीर मै कैलशियम की कमी को भी दूर करता है डाक्टर के सलाह के अनुसार इसका सेवन करने से आपके सभी प्रकार के रोगों को दूर करने में मदद करता हैं।
अनेकों लाभदायक और गुणकारी होने के बावजूद इसको सिर्फ और सिर्फ पूजा पाठ के सामग्री में ही इस्तेमाल किया जाता हैं वो भी सिर्फ लोगों को जानकारी के आभाव के कारण अगर इसको इसका पहचान और नाम दिया जाए जो कि मिथिला का संस्कृति सभ्यता और रोजगार तीनों ही हैं।
जैसे जैसे जागरूकता फैल रही हैं मांग भी बढ़ रही हैं,लेकिन मांग एक ओर ही हैं कि अपना नाम हो अपना पहचान हो ,विश्व स्तर पर लोग इसको पहचाने और मिथिला का नाम भी जाने तभी तो आगे बढ़ेगा अपने क्षेत्र मै मखान।
आग्रह: बिहार मखान के नाम से नहीं मिथिला मखाने (Makhane) के नाम से इसका पहचान हो जो की एक मिथिलावासी का पहचान है उसका पूंजी है उसके जीवनयापन का स्रोत हैं|
Bahoot khoob bauwa. Enahe lagal rahu.